बी. डी. उनियाल
चैरिटेबल ट्रस्ट
ABOUT THE NEWSPAPER
‘Parvatiya’ was established by Sh. Bishnu Dutt Uniyal, and its illustrious history spanning over three decades is a testament to his vision and industry. From 1953 to 1986, Parvatiya was in continuous publication and circulation, first as a weekly newspaper and later as a daily as well.
After having the first six editions published from Agra, Sh. Uniyal started publishing the newspaper from Almora, owing to the positive reception of the early editions. Thereafter, publication shifted to Ramnagar, and finally to Nainital in the year 1956, which became the primary work station of the paper for the remainder of its life. Apart from its base in Nainital, publication also took place from Shimla, Haldwani, Tehri, Kotdwar, Haridwar from time to time.
On May 1, 1972, Parvatiya became the first daily newspaper to be published from the mountainous regions of erstwhile Uttar Pradesh (present day Uttarakhand).
The newspaper owed its popularity not only to its exemplary coverage of contemporary local, regional, national, and international news, but also to its insightful editorials, diverse columns, attention to cultural, scientific, and sports issues, articles by both intellectuals (belonging to all schools of thought) and ordinary citizens (belonging to all walks of life), along with its ability to collate and lucidly present a comprehensive set of information.
‘Parvatiya’ was principled and steadfast in its neutrality, and never owed allegiance to any political ideology. Instead, it viewed events and processes through a lens that would best be described as creative, sharp, and, at times, satirical. Thus, it consistently and impartially assumed the role of a guide, critic, and opposition all at once. Its wide circulation was evidence of the public appreciation of its vision and work.
Throughout its lifetime, the newspaper attracted public-spirited citizens, particularly the youth, who had in interest in literature and journalism. Today, many eminent names in the world of literature and journalism were associated with Parvatiya in some capacity or the other. The entire team of the newspaper, at every rung of the hierarchy, was reputed to be dedicated, able, and compassionate.
अखबार के बारे में
१९५३ से १९८६ तक पर्वतीय का प्रकाशन, पहले साप्ताहिक और फिर दैनिक के रूप में हुआ, ये उसके संस्थापक-संपादक, बिष्णु दत्त उनियाल की दूरदृष्टि, महत्वाकांक्षा, व लगन का परिणाम था।
भारत की स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद हुए पहले आम चुनाव के कुछ ही समय बाद, पर्वतीय का १९५३ में पहली बार प्रकाशन हुआ। पहले ६ अंक आगरा स्थित उजाला प्रेस से छपे। उसके बाद समाचार पहली बार उत्तर प्रदेश राज्य के पहाड़ी इलाकों से (जिसे आज उत्तराखंड राज्य कहा जाएगा) शुरू हुआ। लगभग एक साल तक उसका प्रकाशन दानपुर हाउस (डाबर भवन), गांधी मार्ग, अल्मोड़ा से चला| फिर कुछ समय रामनगर से प्रकाशित होने के पश्चात,पर्वतीय अपनी प्रमुख कार्यस्थली, नैनीताल, १९५६ में पहुंचा। यहां पहले ईटन हाउस एनेक्सी (हिमालय होटल), और फिर मेलविल शॉप कंपाउंड, मॉल रोड से करीब तीस वर्ष तक छपता रहा। नैनीताल के अलावा, शिमला, हल्द्वानी, दिल्ली, टिहरी, कोटद्वार, हरिद्वार से भी समाचार पत्र समय-समय पर प्रकाशित होता रहा।
१ मई १९७२ को पर्वतीय उत्तर प्रदेश राज्य के पहाड़ी इलाकों से प्रकाशित होने वाला पहला दैनिक समाचार पत्र बना।
पर्वतीय की लोकप्रियता समसामयिक स्थानीय, क्षेत्रीय, राष्ट्रीय, व अंतरराष्ट्रीय समाचारों के अतिरिक्त उसमें प्रकाशित संपादकीय, विविध कॉलमों, सांस्कृतिक, विज्ञान व खेलकूद संबंधित आलेखों, विभिन्न विचारों के बुद्धिजीवियों एवं आम जनता के लेखों, एवं विचार सम्मिलित करने के कारण रही। किसी भी राजनैतिक दल या विचारधारा से समीपता ना रखते हुए, पर्वतीय ने तीखे, पैने, व्यंगात्मक, व सृजनात्मक शैली को अपनाते हुए तत्कालीन समय में एक सलाहकार, समीक्षक, एवं प्रतिपक्षी की भूमिका निभाई।
समाचार पत्र के जीवन काल में, इससे स्थानीय साहित्य व पत्रकारिता में रुचि रखने वाले कई व्यक्ति जुड़े। आज पत्रकारिता और साहित्यिक जगत में अनेक सफल व प्रतिष्ठित नाम पर्वतीय के प्रांगण से उभरे। पर्वतीय की टीम हर स्तर पर कर्मठ, सक्षम, और सौहार्दपूर्ण मानी जाती थी।
पर्वतीय के अंक कुमाऊं विश्वविद्यालय के संग्रहालय में संग्रहित हैं, और इनकी माइक्रोफिल्म नेहरू मेमोरियल म्यूजियम एवं लाइब्रेरी में उपलब्ध हैं।